अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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दुर्दिन महराज
ड्योढ़ी ऊपर
फिर दुर्दिन महराज विराजे
गेहूँ दबे दाढ़ में ऋण की
धान बाढ़ की भेंट हुए
उम्मीदों के बेटा-बेटी
ओढ़ पिछौरा लेट गए
मुँह लटकाए
गहने पहुँचे
बंधक के दरवाजे।
वत्सल छाती को तीखी-सी
एक छुरी की धार मिली
पिता-पुत्र के बँटवारे में
आँगन की दीवार मिली
मिला मोतियाविंद
सास को
आँख बहुरिया आँजे
पूजा के कमरे में पाढ़ी
आतंकित हो भजन भजे
औसारे दहलीज दुआरे
सो-सोकर कटु वचन जगे
खींचातानी
मनमुटाव है
ढोल नगाड़े बजे।
१९ अगस्त २०१३
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