अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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बैठ लें कुछ देर
आओ
बैठ लें
कुछ देर आओ
झील तट पत्थर-शिला पर।
लहर कितना तोड़ती है
लहर कितना जोड़ती है
देख लें
कुछ देख आओ
पाँव पानी में हिलाकर !
मौल न कितना तोड़ता है
मौल न कितना जोड़ता है
तौल लें
औकात अपनी
दृष्टियों को फिर मिलाकर !
१९ अगस्त २०१३
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