अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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इंद्रधनुष यादों
ने ताने
इंद्रधनुष
यादों ने ताने
क्या क्या होगा आज न जाने
सिरहाने चुपचाप आ गया
झोंका मिली जुली गंधों का
अनुगूँजों ने चित्र उकेरा
सटे पीठ से अनुबंधन का
खिड़की से
गुलाब टकराया
किसने छेड़ा साज न जाने
आकारों से रेखाओं को
कितना दूर किये देती है
संबंधों के शीश महल को
चकनाचूर किये देती है
अर्थ देह का
बदले देती
किसकी है आवाज न जाने
२५ अप्रैल
२०११ |