अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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कहा कि सबकी पीड़ा
गाओ
मुझको देकर
घुनी बाँसुरी
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कितना हुआ अनादर सचमुच
मेरे मन में जमी साख का
हाथ दिया चेतना-पुंज को
ढेर समझकर सिर्फ राख का
बेशुमार
पीड़ाएँ देकर
कहा कि सबका मन बहलाओ।
मैं खुश भी हो जाऊँ तो भी
क्या आ जाएगी खुशहाली
जब तक मेरे इर्द-गिर्द है
ये मुरझाए चेहरे खाली
अन्तहीन
गीलापन देकर
कहा कि सबके अश्रु सुखाओ।
प्यार नहीं बेदाग बचा जो
नफरत से टकरा न गया हो
कोई कोना नहीं कि जिसमें
अँधियारा गहरा न गया हो
बुझी-बुझी रोशनी
देकर
कहा कि अब प्रकाश फैलाओ।
१९ अगस्त २०१३ |