अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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पत्थर समय
जन प्रतिनिधि के
पास क्या नहीं
यह पूछें तो ठीक।
हर विभाग के हर ठेके के
वे ही ठेकेदार
चीख दबाकर सभी प्रजा जन
करते जय जय कार
तह में पहुँचें
तह तिलिस्म है
समझें मियाँ रफीक!
उनके नारे, झण्डे उनके
तम्बू और कनात
वे जुबान से कुछ भी कह दें
लाख टके की बात
पत्थर समय
प्रणेताओं के
वे सिरमौर प्रतीक।
उखड़ी सड़क राहगीरों से
कहें मर्म की बात
यह बछिया अनुदान-दान की
क्यों गिनते हो दाँत
वाजिब है
विकास कार्यों में
जनगण रहे शरीक।
१९ अगस्त २०१३ |