अनुभूति में शिवबहादुर सिंह
भदौरिया की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
एक सवाल कि जीवन क्या है
कहा कि सबकी पीड़ा गाओ
कुहासे की शिलाएँ
जिंदगी कठिन तेवर तेरे
दुर्दिन महराज
पत्थर समय
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
बैठ लें कुछ देर आओ
यही सिलसिला है
वटवृक्ष पारदर्शी
गीतों में-
इंद्रधनुष यादों ने ताने
जीकर देख लिया
टेढ़ी चाल जमाने की
नदी का बहना मुझमें हो
पुरवा जो डोल गई
मुक्तक में-
सब कुछ वैसे ही |
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पाँवों में
वृन्दावन बाँधे
जब तुम दिखे
चाँदनी छिटकी
मन मेरा आकाश हो गया।
तारे-तारे गुँथे कथानक
रात महकने लगी अचानक
जब तुम हँसे
फुलायी बेला
मन मेरा मधुमास हो गया।
खिला कदम्ब दृष्टि में साधे
पाँवों में वृन्दावन बाँधे
शब्द स्वरों में
घुली बाँसुरी
मूर्च्छित-सा इतिहास हो गया।
शक्लों के गठबन्धन टूटे
अर्थों के निर्देशन छूटे
जब तुम मिले
भुजा बौरायी
संज्ञा का आभास हो गया।
रस उद्वेलित वर्तुल-टूटा
देह गेह का साथ न छूटा
जब तुम बिछुड़े
काया जागी
होने का एकसास हो गया।
१९ अगस्त २०१३ |