अनुभूति में
सौरभ पाण्डेय
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
आओ सारी बात करें हम
जो कर सके तो कर अभी
फगुनाए मन-मन
बारिश की धूप
साथ बादलों
का
क्षणिकाओं में-
शेल्फ पर किताबें
गीतों में-
अपना खेल अजूबा
आओ साथी बात करें हम
परंपरा और परिवार
पूछता है द्वार
रिस आया बाजार
संकलन में-
हौली है-
फागुन फागुन धूप
शुभ दीपावली-
तुम रंगोली भरो
विजय पर्व-
शक्ति पाँच शब्दरूप |
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साथ बादलों का
ईंट-पत्थरों में घुलके
एक शाम ढल गयी
साथ रह गया है आज
बादलों का स्याह भर
सोचना-गुहारना
कि, मन ही मन पुकारना
पानियों के वेग-सा
उटपटांग विचारना
बूँदियाँ झिहर रहीं जो
कुछ नहीं
हैं चाह भर
अक्स उभर रहा है
बाढ़-बूँद-मेघ रूप में
वज़ूद चौंकता है
आश्वासनों की धूप में
साधने मंजिल चले
हासिलों में
राह भर
हो रही लहर मुखर
हैं स्वप्न-ताल बावरे
घाव चुप पड़े थे आज
हो रहे हैं फिर हरे
बादलो! रे मान जा
न झींसियों में
आह भर
टूटते विश्वास का भी
देखना, अंजाम हो
बिखर गये तो ठीक वर्ना
कुछ मुफीद नाम दो
तौलते रहे थे प्यार
मोल आये
डाह भर
श्याम-वन में
घन-घटा
लहर-लहर विचर रही
हथेलियों पे झील की
मेंहँदी उभर रही
नाम तेरा लिख रही
फुहार से उछाह भर
२७ अप्रैल २०१५ |