अनुभूति में
सौरभ पाण्डेय
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
आओ सारी बात करें हम
जो कर सके तो कर अभी
फगुनाए मन-मन
बारिश की धूप
साथ बादलों
का
क्षणिकाओं में-
शेल्फ पर किताबें
गीतों में-
अपना खेल अजूबा
आओ साथी बात करें हम
परंपरा और परिवार
पूछता है द्वार
रिस आया बाजार
संकलन में-
हौली है-
फागुन फागुन धूप
शुभ दीपावली-
तुम रंगोली भरो
विजय पर्व-
शक्ति पाँच शब्दरूप |
|
परम्परा और
परिवार
पीपल-बरगद
नीम-कनैले
सबकी अपनी-अपनी छाजन!
कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन।
लटके पर्दे से लाचारी।
आँगन-चूल्हा
दोनों भारी।
कठवत सूखा बिन पानी के
पर उम्मीदें
लेतीं परथन!
कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन।
खिड़की अंधी
पल्ले बहरे।
दीप बिना ही
तुलसी चौरे।
गुमसुम देव शिवाला थामे
आज पराये
कातिक-अगहन!
कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन।
कोने-कोने
छाया कुहरा
सूरज रह-रह घबरा-घबरा--
अपने हिस्से के आँगन में
टुक-टुक ताकें
औंधे बरतन!
कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन।
छागल अलता
कोर सुनहरी
काजल-सेनुर, बातें गहरी
चुभती चूड़ी याद हुई फिर
देख रुआँसा
दरका दरपन!
कैसे रिश्ते, कैसे बन्धन।
१२ मई २०१४ |