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आओ साथी बात करें हम
परंपरा और परिवार
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रिस आया बाजार

संकलन में-
हौली है- फागुन फागुन धूप
शुभ दीपावली- तुम रंगोली भरो
विजय पर्व- शक्ति पाँच शब्दरूप

 

रिस आया बाज़ार

बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार

हर कश से छल्ले लिए
बातें हुई बवण्डरी
मुँदी-मुँदी सी आँख की
उम्मीदें कैलेण्डरी

गलबहियों के ढँग पर
करता कौन विचार।

रजनीगंधा सूँघता
लती हुआ मन रेह का
फेनिल-कॉफ़ी घूँट पर
बाँध तोड़ता देह का

अधलेटे म्यूराल पर
बाँच रहा अख़बार

खिड़की के बाहर हवा
इतनी कब निर्लिप्त थी
गुलमोहर के गाल पर
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर
आँकी थी तब प्यार।

१२ मई २०१४

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