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हौली है- फागुन फागुन धूप
शुभ दीपावली- तुम रंगोली भरो
विजय पर्व- शक्ति पाँच शब्दरूप

 

अपना खेल अजूबा

देखो अपना खेल, अजूबा,
देखो अपना खेल।
द्वारे बंदनवार प्रगति का
पिछवाड़े धुर-खेल।
भइया, देखो अपना खेल।

अक्की-बक्की पवन की चक्की
देखे दुनिया हक्की-बक्की
फसल निकाई, खेत गोड़ाई
अनमन माई, बाबू झक्की।

जतन-मजूरी, खेती-बाड़ी
जीना धक्कमपेल,
भइया, देखो अपना खेल।

खुल्लमखुल्ला गड़बड़-झाला
आमद-खर्चा चीखमचिल्ला
खुरपी-तसला, मेड़-कुदाली
बाबू बौड़म करें बवाला।

रात-पराती आँखन देखे
हाट-खेत बेमेल,
भइया, देखो अपना खेल।

झूम-झूम कर खूब बजाया
उन्नति की बज रही पिपिहिरी
पीट नगाड़ा मचा ढिंढोरा
लेकिन उन्नति रही टिटिहिरी

संसदवालों के हम मुहरे
पाँसा-गोटी झेल,
भइया, देखो अपना खेल। 

१२ मई २०१४

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