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आओ सारी बात करें हम
जो कर सके तो कर अभी
फगुनाए मन-मन
बारिश की धूप

साथ बादलों का

क्षणिकाओं में-
शेल्फ पर किताबें

गीतों में-
अपना खेल अजूबा
आओ साथी बात करें हम
परंपरा और परिवार
पूछता है द्वार
रिस आया बाजार

संकलन में-
हौली है- फागुन फागुन धूप
शुभ दीपावली- तुम रंगोली भरो
विजय पर्व- शक्ति पाँच शब्दरूप

 

फगुनाए मन-मन

सींच गया कोई
एक बूँद नेह से
फगुनाए मन-मन
चैताए देह से

तनी-तनी कलिका
पोर-पोर हिल गयी
अँकुसी थी उस-कुस
उद्-बुद् खिल गयी
मिलजुल रची गँध
झर रही मेह से

बचे-खुचे टेसू
बाड़-बाड़ गिन-गिन
बने धार देह की
धूल-धूल किन-किन
टीस पर उग आए
लगे अवलेह से

बेल-बतिया-सहजन
घूम-घूम कहानी
फिर हर-हर गंगे
लोटा भर पानी
भउजी का छोह
भात छौंकी परेह से

२७ अप्रैल २०१५

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