अनुभूति में
रविशंकर मिश्र
'रवि'
की रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
अपना बोझ दूसरों के सिर
अभी अभी अवतरित हुई जो
कलम चलाकर
कैसी आजादी
तकलीफें हैं
गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
देश रसोई
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर
चाय का कप
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
सौ सौ कुंठाओं मे
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तकलीफें हैं
तकलीफे हैं पर
अपना कर्तव्य
जतन से निभा रही है
बहू शहर की
माटी के चूल्हे पर
खाना बना रही है
कुढ़ती है पर रीति रिवाजें
अच्छी तरह निभा लेती है
पर्दे से नफरत है
लेकिन
घूँघट काढ़ लजा लेती है
जब देखो तब बैठ प्रेम से
पाँव सास के दबा रही है
घिन तो आती गोबर से पर
शिकवा नहीं किया करती है
अपने कोमल हाथों
कच्चा आँगन
लीप लिया करती है
पिया तड़पते दुलहिन
कैसे कैसे दुखड़े उठा रही है
नहीं कोसती कभी पिता को
नहीं झगड़ती है माँ से
अपने मन को
समझा लेती
किस्मत की परिभाषा से
सदा दुखी थोड़े रहती है
देखो तो मुस्कुरा रही है
१ सिंतंबर २०१८ |