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अनुभूति में रविशंकर मिश्र 'रवि' की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर

गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
 

 

ऊपर हम कैसे उठें

ऊपर हम कैसे उठें टूटी हैं सीढ़ियाँ
पीढ़ा भर जमीन को लड़ीं
कई पी़ढ़ियाँ

बैल बिके
खेत बिके और बिके बर्तन
किन्तु सोच में नहीं आया परिवर्तन
अमन–चैन की फसल चाट
गयीं टिडि्डयाँ

थाना
कचहरी कुछ भी न छूटा है
वजह मात्र इतनी है गड़ा एक खूँटा है
खूँटे ने दिलों में भी गाड़ी
हैं खूँटियाँ

गाँवों के
आदमी भी अजीब दीखे हैं
दुखी देख सुखी हुये, सुखी देख सूखे हैं
तोड़ दी समाज ने रीढ़ों
की हडि्डयाँ

२१ जनवरी २०१३

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