अनुभूति में
रविशंकर मिश्र
'रवि'
की रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर
चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
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मुस्कुराकर चाय का कप
मुस्कुराकर
चाय का कप
हाथ में तुम दे गयीं
और जाने ख़्वाब कितने
साथ में
तुम दे गयीं
लोग शादी
के लिये
दस बीस लड़की देखते हैं
और हम पहली पहल में
बात पक्की देखते हैं
यूँ लजाती सी दुपट्टा
दाँत में
तुम दे गयीं
वो तुम्हारा
ओट में
छुपकर निरंतर झाँकना
जब अकेले में मिलो तो
हाथ से मुँह ढाँपना
प्रीति का संकेत तो
हर बात में
तुम दे गयीं
रूप–गुन पर
माँ लुभायीं
संस्कारों पर पिताजी
और मेरे भी हृदय का
क्या रहा अरमान बाकी
जो जरूरी था वही
इफ़रात में
तुम दे गयीं
२१ जनवरी २०१३
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