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अनुभूति में रविशंकर मिश्र 'रवि' की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर

गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
 

  सौ–सौ कुण्ठाओं में

पति–बच्चों के पीछे अब तक
लाइफ़ बीती है
सौ–सौ कुण्ठाओं में हाउस–
वाइफ़ जीती है

कॅालेजों के दिन वाले
हाईप्रोफाइल सपने
घर में होकर कैद लगे हैं
घुटने और तड़पने
लगे गृहस्थी की स्वादिष्ट
मिठाई तीती है

छद्म सही पर पराधीनता
चुपके चुपके सिसके
मुट्ठी भर आज़ादी देते हैं
मुट्टी भर सिक्के
जब टटोलती पाती मन की
गागर रीती है

एक आत्मविश्वास लिये
चेहरे पर कुछ होने का
सखियाँ दफ्तर जातीं
याद दिलातीं कुछ खोने का
सुबह नौ बजे, शाम छः बजे
आँसू पीती है

पर देता संतोष प्यार का
झरना जो बहता है
चलो एक के पीछे सारा
घर तो खुश रहता है
सब के सुख के लिये होंठ भी
अपने सीती है

२१ जनवरी २०१३

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