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खिला न कोई फूल
खिला न कोई फूल
प्रफुल्लित टहनी नहीं हुयी
आज सुबह से मुस्कानों की
बोहनी नहीं हुयी
चाय अकेले पी है
मन ज्यों टूटा–टूटा है
कल से ही घर का मौसम
कुछ रूठा–रूठा है
बीच उठी दीवार अभी तक
ढहनी नहीं हुयी
गोंद नहीं आयी, मेरी
ममता भी रही ठगी
जाने क्यों बिटिया भी
रोते रोते आज जगी
कैसे कह दूँ कोई पीड़ा
सहनी नहीं हुयी
भूली दवा पिताजी की
दिन कितना व्यस्त रहा
अम्मा का टूटा चश्मा भी
मुझसे त्रस्त रहा
पछतावे की व्यथा किसी से
कहनी नहीं हुयी
२० जनवरी २०१४
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