अनुभूति में
रविशंकर मिश्र
'रवि'
की रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर
चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
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सन्दर्भों से
कटकर
इस दुनिया में
दुनिया से ही हटकर बैठे हैं
बहुत लोग तो
सन्दर्भों से कटकर बैठे हैं
काम चलाते केवल
अच्छे–अच्छे नारों से
कोई मतलब नहीं किसी की
चीख–पुकारों से
संवेदन की जैसे खाट
उलट कर बैठे हैं
पढ़ते हैं अख़बार
हवा को गाली देते हैं
जगती हुई विसंगतियों पर
ताली देते हैं
चाय सुड़कते चौराहों पर
डटकर बैठे हैं
मरहम का अपमान
समर्थन केवल घावों का
हर कुरीति को शह दें
लेकर नाम प्रथाओं का
सुनी–सुनाई बातों को ही
रटकर बैठे हैं
२० जनवरी २०१४
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