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धीरे–धीरे गुन-शऊर का
धीरे–धीरे
गुन-शऊर का
राज़ रहा है खुल
बाँध रहा घर
नयी बहू की
तारीफों के पुल
जगर–मगर-सा
घर करता है,
दप–दप दमके आँगन
छन–छन चूड़ी
छनके, छनके
पायल रुनझुन
घर आँगन में चहका करती
जैसे हो बुलबुल
झटपट आटा
गूँथ पूरियाँ
तलती नरम–नरम
खाना बने कि
सब जन उँगली
चाटें छोड़ शरम
ननद बताती सबसे कैसे
चलती है करछुल
पाँव महावर
हाथों मेंहदी,
माथे पर है बिन्दिया
गौने आते
उड़ा गयी है
दो नैनों की निन्दिया
इक मन जब तब करता रहता
है कुलबुल–कुलबुल
सुन्दर है
सुशील तो है ही
मीठी कितनी बोली
पढ़ी–लिखी
गृहकार्यदक्ष है
पर मन की है भोली
नयी बहू को मिलना ही है
नम्बर सौ में फुल
२१ जनवरी २०१३
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