अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रविशंकर मिश्र 'रवि' की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
अपना बोझ दूसरों के सिर
अभी अभी अवतरित हुई जो
कलम चलाकर
कैसी आजादी
तकलीफें हैं

गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
देश रसोई
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर चाय का कप
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
सौ सौ कुंठाओं मे

 


 

 

कलम चलाकर

बदल सके जो कलम चलाकर
भाषा की तकदीर
हिन्दी फिर से ढूँढ़ रही है
तुलसी, सूर, कबीर

नयी उक्तियाँ,नये शब्द
नव संवादों की माला
जनमानस को सौंप सके जो
जीवन–मधु का प्याला
शब्द–क्रान्ति को स्वर दे
तोड़े जड़ता की जंजीर

नकल छोड़ जो करे प्रवाहित
मौलिक चिन्तन–धारा
नये शोध की हवा बहाये
पुलक उठे जग सारा
मिले विश्व–गुरु को फिर से
अपनी खोयी जागीर

ज्ञान और विज्ञान खिलें
महकें हिन्दी भाषा में
आगे बढ़कर हम भविष्य की
बागडोर को थामें
कमर कसें,क्यों डरें
भले ही स्थिति है गम्भीर

१ सिंतंबर २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter