अनुभूति में
रविशंकर मिश्र
'रवि'
की रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
अपना बोझ दूसरों के सिर
अभी अभी अवतरित हुई जो
कलम चलाकर
कैसी आजादी
तकलीफें हैं
गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
देश रसोई
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर
चाय का कप
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
सौ सौ कुंठाओं मे
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कैसी आजादी
भूखे पेट आज भी सोती
आधी आबादी
हमें मिली आजादी लेकिन
कैसी आजादी
जय जवान औ जय किसान
का नारा घायल है
सीमा हो या खेत
खड़ी मुश्किल ही मुश्किल है
फरियादें अपनी लेकर सिर
पीटे फरियादी
कदम–कदम पर खतरों की
अगवानी करनी है
हाथ बाँधकर सीमा की
निगरानी करनी है
विवश रहे गोली खाने को
सीने फौलादी
आज शहादत की कीमत
कब है दो आँसू भी
गद्दारी को खुलेआम
मिलती है शाबाशी
वतन बेचने पर आमादा
है अब तो खादी
लोकतंत्र तो बचा हुआ है
केवल नारों में
देश सिमट आया गिनती के
घर परिवारों में
डूब गये परिवारवाद में
सब समाजवादी
१ सिंतंबर २०१८ |