अनुभूति में
रविशंकर मिश्र
'रवि'
की रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
अपना बोझ दूसरों के सिर
अभी अभी अवतरित हुई जो
कलम चलाकर
कैसी आजादी
तकलीफें हैं
गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
देश रसोई
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर
चाय का कप
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर
सौ सौ कुंठाओं मे
|
|
अपना बोझ दूसरों के सिर
अपना बोझ दूसरों के सिर
रखना जिसने सीख लिया
वही धन्य है जिसने
इस जीवन में कुछ भी नहीं किया
दफ्तर, खेत
कारखानों में
खटते हलाकान हो जाते
लोग पेट की आग बुझाने
में लोहे के चने चबाते
इतनी कठिन ज़िन्दगी को
जो आसानी के साथ जिया
हर्र फिटकरी
लगे न कुछ भी
और रंग भी सब से चोखा
अपनी मेहनत का फल उसको
क्यों न लगे फिर फीका फीका
औरों की मेहनत के फल का
जिसने मीठा शेक पिया
बातों के ही
ऋषि दधीचि हैं
बातों के ही हरिश्चन्द्र भी
बातों ही बातों में रखते
बात बनाने का प्रबन्ध भी
बातों की खेती से जिसने
फसल उगाना सीख लिया
प्राण हर लिये
जाते हैं पर
काटा जाता नहीं गला है
नये जमाने में शोषण करना भी
सचमुच एक कला है
जोंक सरीखे जिसने जीवन भर
औरों का खून पिया
१ सिंतंबर २०१८ |