हँसी का टुकड़ा
नथनी की परछाईं पर,
सो रहा हँसी का टुकड़ा!
उसे सुनाकर ख़ुश है लोरी,
गोरी तेरा मुखड़ा!
लट ने चूमा,
उँगली ने छू धीरे से सहलाया!
फिर उसको ओंठों पर धरकर
मेरी ओर उड़ाया!
मेरे पास
पहुँचकर उसने
दूर कर दिया दुखड़ा!
मैंने भी उसके
सुर से सुर लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
महक-महककर
चमक आ गई,
दमक उठा है मुखड़ा!
४ अक्तूबर २०१०