धूप की
परछाइयाँ
धूप की परछाइयाँ जिस दिन
बनेंगी,
भूख मिटकर आँत में दीपक जलाएगी!
तुम्हारी याद आएगी!!
पत्थरों की रागिनी में
मत मिलाना अब कभी
अपने हृदय की बाँसुरी,
गीत गाता हूँ नहीं मैं अब
छली मधुरंजना के!
वेणु की किलकारियाँ जिस दिन थमेंगी,
चाह मरकर प्रीत की धुन गुनगुनाएगी!
तुम्हारी याद आएगी!!
मधु प्रणय की भोर कहकर
मत बुलाना तुम मुझे
अब यामिनी में विधुवती,
सुन नहीं पाता, विवश हूँ, सुर
किसी भी अर्चना के!
बिन कलम के स्याहियाँ जिस दिन लिखेंगी,
ओस जलकर कली का यौवन सजाएगी!
तुम्हारी याद आएगी!!
१२ अप्रैल २०१०