मेरे मन-महेश की पारो
बनी तुम्हारी मधु-मुस्कान!
मेरा ध्यान लक्ष्य करके जो
करती चाहत का संधान!
जब-जब मुग्ध तुम्हारी छवियों
की बातें सुधियाँ करतीं!
हृदय-वेणु की मुदित तरंगें
झंकृतियों से सज उठतीं!
मेरा दर्शन, रूप तुम्हारा
बने सुवासित मीत समान!
मेरे मन...
तरुण विहग की बोली-जैसी
लगे तुम्हारी मीठी बात!
जिसको सुनकर रोम-रोम में
खिलता मधुरिम सुखद प्रभात!
मेरे प्रणय-कैमरे की तुम
बनीं प्रीति-पायस-प्रतिमान !
मेरे मन...
१२ अप्रैल २०१०