मेरा हृदय
अलंकृत
मेरा हृदय अलंकृत होकर
करे न क्यों परिहास!
उसे मिला है-
मुग्ध चंद्रिका-सा अनुरंजित हास!
बनी उदासी की रेखाएँ
मुस्कानों का आलेखन!
अनुरागी मन करता नर्तन
पाकर सुख का संवेगन!
चाहत की हर
सखी कर रचाती तृप्तिपूर्ण मधुरास!
उसे मिला है-
मुग्ध चंद्रिका-सा अनुरंजित हास!
बूँद-बूँद में प्रीत सजाकर
जैसे सज जाता सावन!
आशाओं की परिभाषा में
जुड़े शब्द कुछ मनभावन!
प्रणय-लता हो
रही सुहागिन पाकर समन-सुवास!
उसे मिला है-
मुग्ध चंद्रिका-सा अनुरंजित हास!
१२ अप्रैल २०१०