अनुभूति में
रावेंद्रकुमार
रवि
की रचनाएँ—
बालगीतों में-
अपनी माँ का मुखड़ा
बढ़िया बहुत
पसीना
मेरी
शोभा प्यारी है
हम भी उड़ते
गीतों में-
ओ मेरे मनमीत
धूप की परछाइयाँ
नाम तुम्हारा
मेरा हृदय अलंकृत
मेरे मन महेश
कार्यशाला में-
कोहरे में भोर हुई
संकलन में-
फागुन- आए कैसे
बसंत
होली है-
होली
आई रे
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अपनी माँ का
मुखड़ा
मुझको सबसे अच्छा
लगता-
अपनी माँ का मुखड़ा
कल-कल करती नदिया अच्छी,
पंछी की सुरलहरी अच्छी,
हर मंदिर की घंटी अच्छी,
मेघों की सरगम भी अच्छी
लेकिन मुझको अच्छी लगती-
अपनी माँ की मीठी लोरी,
जो हर लेती
पल-भर में ही
मेरा सारा दुखड़ा
मुझको सबसे अच्छा लगता-
अपनी माँ का मुखड़ा
सुबह-शाम का सूरज अच्छा,
चाँद निकलता-छुपता अच्छा,
चम-चम करता तारा अच्छा,
बगिया का हर फुलवा अच्छा
लेकिन मुझको अच्छी लगती-
अपनी माँ की हँसी रस-भरी,
जिसे देखकर
मैं लगता हूँ
उसके दिल का टुकड़ा
मुझको सबसे अच्छा लगता-
अपनी माँ का मुखड़ा
७ जून २०१०
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