चाहत का सिंगार
जियरा
मचल-मचल गाए, ज्यों
नदिया में पतवार!
प्यार की पड़ने लगी फुहार!
मेंहदी
रचे हाथ को कसकर
पहली-पहली बार,
क्वाँरे हाथों में पहनाए
ज्यों चूड़ी मनिहार,
वैसे ही सज जाए मन में
चाहत का सिंगार!
खिली,
अधखिली कली देखकर
मन ही मन मुस्काए,
उसकी छवि की हँसी देखकर
गुन-गुनकर कुछ गाए,
आँखों में उसकी वसंत का
हो जाए दीदार!
४ अक्तूबर २०१०