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अनुभूति में डा. राजेंद्र गौतम की रचनाएँ 

नए गीतों में-
कस्बे की साँझ
द्वापर प्रसंग
भूल गया मेरा शहर

गीतों में-
चिड़िया का वादा
पिता सरीखे गाँव
बरगद जलते है
मुझको भुला देना
मन, कितने पाप किए
महानगर में संध्या
वृद्धा-पुराण
शब्द सभी पथराए
सलीबों पर टंगे दिन

दोहों में-
बारह दोहे

 

  द्वापर प्रसंग

बहता
काला रक्त है
हरिण-मुखी थिर पाँव
यह द्वापर की
साँझ है
ढलती जाती छाँव।

लपटें उठतीं
गगन तक
कैसा यह मृग-दाव
इस अंधे युग के नहीं
संभव मिटाने घाव।

दुर्लभ अपनी बंधुता
दुर्लभ यह प्रासाद
कक्ष-कक्ष में
लाख से
हों संबंध अगाध।

प्रजातंत्र की
द्रौपदी
राजनीति का द्यूत
पौरुष के
अपमान की
गाथा कहते सूत।

चंपानगरी-सा छुटा
शिशु-वसु
कब किस तीर
मान-दग्ध
कुरु-भूमि में
हम वैकर्तन वीर।

अभिनंदित
क्यों हो नहीं
भीष्म-जयी गांडीव
रक्षित
नंदी-घोष में
ढाल बना है क्लीव।

रह कोलाहल-घर्षिता
सांध्य काकली
मौन
हुई विवसना श्यामला
अब वंशीधर
कौन।

कौरवता
इस दौर में
इतनी हुई असीम
दुःशासन के
सामने
बौने अर्जुन-भीम।

नायक-खलनायक हुए
अब इतने समरूप
लगे
वक्त का चेहरा
धरे विदूषक रूप।

रहने दो
अब मत कहो
दया करो हे व्यास
पिघले
शीशे-सा हुआ
रक्त-सना इतिहास।

५ जनवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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