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अनुभूति में डा. राजेंद्र गौतम की रचनाएँ 

नए गीत-
पाँवों में पहिए लगे
क़स्बे की साँझ

द्वापर प्रसंग

गीतों में-
चिड़िया का वादा
पिता सरीखे गाँव
बरगद जलते है

मुझको भुला देना
मन, कितने पाप किए
महानगर में संध्या
वृद्धा-पुराण
शब्द सभी पथराए
सलीबों पर टंगे दिन

दोहों में-
बारह दोहे

 

 

सलीबों पर टंगे दिन

अब सलीबों पर टँगे हैं
फूल-से महके हुए दिन।

भीड़ के पहियों तले
कुचली हुई पाँखें
धुंध में पथ खोजती
कुहरा गई आँखें
समय की हथकड़ी पहने
गंध-से बहके हुए दिन।

सींखचों के पार बंदी
सिसकियाँ सोईं
देह टूटी साँझ वन में
भटक कर खोईं
ढो रहे निवास-यात्रा
धूप-से दहके हुए दिन।

परिचयों की चूड़ियाँ
कल टूटकर बिखरीं
शिलाओं की पर्त अब
हर साँस पर उभरीं
उड़ गए अनजान नभ से
विहग-से चहके हुए दिन।

16 फरवरी 2007

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