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अनुभूति में डा. राजेंद्र गौतम की रचनाएँ 

नए गीत-
पाँवों में पहिए लगे
क़स्बे की साँझ

द्वापर प्रसंग

गीतों में-
चिड़िया का वादा
पिता सरीखे गाँव
बरगद जलते है

मुझको भुला देना
मन, कितने पाप किए
महानगर में संध्या
वृद्धा-पुराण
शब्द सभी पथराए
सलीबों पर टंगे दिन

दोहों में-
बारह दोहे

 

 

मुझको भुला देना

तुम एक बिसरे गीत-सा मुझको भुला देना।

जब नीम का वह ठूँठ डूबेगा अँधेरे में
जब दूर पर लौ झोंपड़ी में टिमटिमाएगी
होगी समेटे गोद में कुछ राग अनजाने
वह एक ख़ामोशी तुम्हारे पास आएगी

यदि यों अकेले में कभी शिशु याद के जागें
दे थपकियाँ चुपचाप तुम उनको सुला देना।

कब की मिटी उस राह पर पदरेख भी अब तो
जिस पर कुँवारी मंजरी की गंध बिखरी थी
वे दहकते अंगार भी अब बुझ चुके सारे
पा आँच जिनसे स्वप्न की भी देह निखरी थी

उनकी क्षितिज के छोर तक अब धूल उड़ती है
छूटी कहीं कुछ भोश तो जल में बहा देना।

है एक कुहरा अब नदी के पाट पर छाया
इन दो तटों के बीच में चट्टान फैली है
मैं जानता हूँ डबडबाए नयन है किसके
तुम जानती इस ओर भी दो आँख मैली हैं

होगा नहीं इन दूरियों का संतरण अब तो
पुल बह गए जो धार में उनको भुला देना।

सब जा रहे मिटते समय की रेत पर आखर
धुँधले हुए संदर्भ का इतिहास क्या लिखना
रूमाल-सा टुकड़ा बचा उस विगत गाथा का
देगा नहीं संतोष कुछ भी पास में रखना

तूफ़ान सुनते हैं कहीं पर पास ही सोया
ख़तरा बनें जो पेड़ को वे पल भुला देना।

16 फरवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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