अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डा. राजेंद्र गौतम की रचनाएँ 

नए गीत-
पाँवों में पहिए लगे
क़स्बे की साँझ

द्वापर प्रसंग

गीतों में-
चिड़िया का वादा
पिता सरीखे गाँव
बरगद जलते है

मुझको भुला देना
मन, कितने पाप किए
महानगर में संध्या
वृद्धा-पुराण
शब्द सभी पथराए
सलीबों पर टंगे दिन

दोहों में-
बारह दोहे

 

मन, कितने पाप किए

गीतों में
लिखता है जो पल
वे तूने नहीं जिए
मन, कितने पाप किए

धुंध-भरी आँखें
बापू की माँ की
तेरी आँखों में क्या
रोज़ नहीं झाँकी
वे तो बतियाने को आतुर
तू रहता होंठ सिए
मन, कितने पाप किए

लिख-लिख कर फाड़ी जो
छुट्टी की अर्ज़ी
डस्टबिन गवाही है
किसकी खुदगर्ज़ी
तूने इस छप्पर को थे
कितने वचन दिए
मन, कितने पाप किए

इनके संग दीवाली
उनके संग होली
बाट देखते सूखी
घर की रांगोली
घर से दफ्तर आते-जाते
सब रिश्ते रेत किए
मन, कितने पाप किए

16 फरवरी 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter