बरगद जलते हैं
इस जंगल में आग लगी है
बरगद जलते हैं।
भुने कबूतर शाखों से हैं
टप-टप चू पड़ते
हवन-कुंड में लपट उठे ज्यों
यों समिधा बनते
अंडे-बच्चे नहीं बचेंगे
नीड़ सुलगते हैं।
पिघला लावा भर लाई यह
जाती हुई सदी
हिरणों की आँखों में बहती
भय की एक नदी
झीलों-तालों से तेज़ाबी
बादल उठते हैं।
उजले कल की छाया ठिठकी
काले ठूँठों पर
नरक बना घुटती चीख़ों से
यह कलरव का घर
दूब उबलती, रेत पिघलती
खेत झुलसते हैं।
16 फरवरी 2007
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