अनुभूति में
ओम प्रकाश तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
कटवा कर नाखून
जन गण मन की बात न कर
दामिनी
परजा झेले आपद्काल
मोहताज रिसाले
गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
अखबारों में
कर्फ्यू में है ढील
कहानी परियों की
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये
बूँद बनी अभिशाप
राजपथ पर
रुपैया रोता है
हम कैसे मानें
कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ
आज के नेता और चुनाव
अंजुमन में-
ख़यालों में
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मोहताज रिसाले
गूँगों के लिए थे कभी आवाज रिसाले
किस हाल में हैं आ गए ये आज रिसाले
हैं आँख दिखाने लगीं मिट्टी की मूरतें
गिरते थे जिनपे बनके कभी गाज रिसाले
था राज़फ़ाश ही जहाँ ईमान-ओ-मज़हब
कर जाते हजम आज तो हर राज़ रिसाले
क्या-क्या न सहे ज़ुल्म कि आज़ाद मुल्क हो
अब मुल्क है आज़ाद तो मोहताज़ रिसाले
जिनपर जम्हूरियत ने किया नाज़ हमेशा
हैं बिकते बनके जिंस दग़ाबाज़ रिसाले
रहबर थे, हमसफर थे, रहनुमा थे जो कभी
बदले हुए हैं आज वो अंदाज़ रिसाले
ग़र डर गया तू, तेरी रोशनाई-ओ-कलम
कब तक रहेगा सिर पे तेरे ताज रिसाले
१३ जुलाई २०१५
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