अनुभूति में
ओम प्रकाश तिवारी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अखबारों में
कहानी परियों की
राजपथ पर
रुपैया रोता है
हम कैसे मानें
गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये
बूँद बनी अभिशाप
कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ
आज के नेता और चुनाव
अंजुमन में-
ख़यालों में
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अखबारों में समाचार है
अखबारों में समाचार है
उल्लू बैठा डार-डार है
देश दिखाई देता दुखिया
लूट सके जो वो है सुखिया
लाचारी में शीश झुकाए
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया
चुने हुए राजा-रानी से
लोकतंत्र ही शर्मसार है
एक समय था गुल्ली-डंडा
खेल बना अब चोखा धंधा
रहो खेलते मनमानी से
जब तक गले पड़े न फंदा
राजनीति के खिलाड़ियों से
खेल स्वयं ही गया हार है
विकीलीक्स का नया खुलासा
सुनकर होती बड़ी निराशा
चौसर भले बिछी हो अपनी
पश्चिम फेंक रहा है पासा
शायद इसीलिए दिखती अब
लोकतंत्र की मुड़ी धार है
२ जून २०१४
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