अनुभूति में
ओम प्रकाश तिवारी
की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये
गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
बूँद बनी अभिशाप
कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ
अंजुमन में-
ख़यालों में
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गाली देना है अपना अधिकार
लोकतंत्र में
गाली देना
है अपना अधिकार
अपना काम पड़े तो देना
टेबल के नीचे से लेना
भला चलेगी कैसे दुनिया
अगर चले न लेना-देना
फिर भी हमको भ्रष्टाचारी
दिखती है सरकार
बाट जोहता रहता दफ्तर
कुछ कहने से डरता अफसर
लंच खत्म होते ही कुर्सी
बन जाती है अपना बिस्तर
सहकर्मी मेरी फाइल का
ढोते रहते भार
पाँच बरस तक हरदम रोना
वोटिंग के दिन जमकर सोना
अगर गए भी मत देने तो
जात-पाँत के नाम डुबोना
लेकिन हमको नेता चहिए
बिल्कुल जिम्मेदार
क्रांति कर रहे हैं बिस्तर में
जीते हैं, मरते हैं डर में
भगत सिंह दो-चार चाहिए
लेकिन पड़ोस वाले घर में
तोप हमारी कंधा तेरा
सपने हों साकार
२४ दिसंबर २०१२
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