अनुभूति में
ओम प्रकाश तिवारी
की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये
गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
बूँद बनी अभिशाप
कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ
अंजुमन में-
ख़यालों में
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कर्फ्यू में है ढील
चलो सखी सब्जी
ले आएँ
कर्फ्यू में है ढील
पाँच मरे पैंतालिस घायल
बोल रहे अखबार
मुट्ठी भर की आबादी में
गायब हैं दो-चार
कुत्ते रोएँ रात गगन में
चक्कर काटें चील
चच्चा के चेहरे पर चुप्पी
दद्दू भी खामोश
बरखुरदारों की हरकत का
सिर पर ओढ़े दोष
सिवईं उस घर से आई, ना
गई बताशा खील
लंबा रस्ता ऊँची मंजिल
जाना तो था दूर,
किंतु आपसी तकरारों ने
धो डाला सब नूर
पैंसठ पग में हाँफ रहे ज्यों
चले हजारों मील
२४ दिसंबर २०१२
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