अनुभूति में
ओम प्रकाश तिवारी
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कहानी परियों की
राजपथ पर
रुपैया रोता है
हम कैसे मानें
गीतों में-
अब सावन ऐसे आता है
अरे रे रे बादल
कर्फ्यू में है ढील
कुम्हड़ा लौकी नहीं चढ़ रहे
गाली देना है अपना अधिकार
चाहे जितने चैनल बदलो
न्याय चाहिये
बूँद बनी अभिशाप
कुंडलियों में-
पाँच चुनावी कुंडलियाँ
आज के नेता और चुनाव
अंजुमन में-
ख़यालों में
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हम कैसे माने कि --
माना कि
आप आज दुनिया में छा गए,
हम कैसे मानें कि अच्छे दिन आ गए।
शेयरों के
भाव भले आसमान छू रहे,
सूर्य-चाँद-तारे भी आँगन में चू रहे
भाजी के भाव मगर नीचे न आ गए,
तो कैसे मानें कि अच्छे
दिन आ गए।
हो सकता
है सुधरें सोने के स्वर ऐंठे,
संभव है रुपया भी डॉलर को चढ़ बैठे
लेकिन हम दाल-भात जब तक न पा गए,
तो कैसे मानें कि अच्छे
दिन आ गए।
दिल्ली में
दीवाली जैसी हर शाम है,
दुनिया भी आ करके ठोंकती सलाम है
जब तक न दिखें गाँव-गाँव जगमगा गए,
हम कैसे मानें कि अच्छे
दिन आ गए।
२ जून २०१४
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