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अनुभूति में मृदुल शर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कड़ी धूप में
कुछ भी बदला नहीं
नचा रहा राजा
सोनकली

गीतों में-
आँख दिखाई है
कठिन समय है
किसी की याद आई
खत मिला
गीत छौने
जोड़ियों को तो बनाता है सदा रब
दूर ही रहो मिट्ठू

पितृपक्ष में
भूल की
यह मत पूछो
रस्मी प्रणाम से

संकलन में-
तुम्हें नमन- क्षमा बापू

 

 

यह मत पूछो

प्रगति पथ पर सीढ़िया चढ़ते हुए
कितना गिरे हम, यह मत पूछो

गाँव जाकर बेंच आये
बाप-दादों का बनाया घर
लगाये वृक्ष उनके
और उर्वर खेत
नोंच आये पृष्ठ स्वर्णिम
हम उसी इतिहास के
जिसमें महकता था
हमारे पूर्वजों का स्वेद

अर्ध की ही पोथियाँ पढ़ते हुए
कितना गिरे हम, यह मत पूछो

बहुत रोका
नीम की उस डाल ने चलते समय
जिसने झुलाया गोद में ले
हमें बचपन में
ताल सिसका-खेत हतप्रभ
खेल का मैदान रोया
चूमती थी धूल मग की
व्यथित हो मन में

जिन्दगी की राह में बढ़ते हुए,
कितना गिरे हम, यह मत पूछो

शहर में
बस एक छोटा सा घरौंदा बना पाया
उसी धन से
जो मिला था बेचकर सब-कुछ हमें
दे रहे परिचय शहर को रोज ही
फिर भी अपरिचित ही रहे हम
गली-सड़कें-मोड़
हम संदेह में

‘मृदुल’ फूटे ढोल मढ़ते हुए
कितना गिरे हम, यह मत पूछो

८ अप्रैल २०१३

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