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कुछ भी बदला
नहीं
कुछ भी बदला नहीं
वही सब बिलकुल वही-वही
धरे हाथ पर हाथ बेबसी
मुँह में जमा दही
राजा के घर राजा जन्में
बँधुआ घर बँधुआ
कहीं नाचती भूख
कहीं पर कटता माल-पुआ
अनुभव कहे ठोंक कर माथा
लिखा लिलार यही
लाठी और भैंस का रिश्ता
वैसा ही गहरा
अँधा है कानून
साक्ष्य फिरता है डरा-डरा
उँगली अगर उठी
कंधे पर, बचता हाथ नहीं
रूप भले बदला राजा का
लेकिन तंत्र वही
जहर उतार सके जो इसका
ऐसा मन्त्र नहीं
परिवर्तन की सभी कोशिशें
बिलकुल ही सतही
१ जून २०१५
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