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किसी की याद
आई
देख कर बादल! तुम्हें
बरबस किसी की याद आयी
खूब आये,
पवन रथ पर ठसक से
घिरे-घुमड़े और गरजे तुम
मगर बरसे नहीं
मोर, दादुर और चातक
हों भले अनपढ़
मगर सब जानते पहचानते हैं ये
तभी हरषे नहीं
निरे वादे और कसमें, पर सभी झूठे,
स्वजन बन बेवफाई
व्रत लिया था
सजल करने को धरा यह
सिन्धु से लेकर चले जल
किन्तु भटके राह में
चन्द छींटे बस गिरा कर
शेष जल खुद पी लिया है
छोड़ सबको,
बिजलियों की छाँह में
इन धरा के जोकरों से
सीख ली तुमने कदाचित बेहयाई
२५ फरवरी २०१३
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