आँख दिखाई है
इधर खुदा
है कुआँ उस तरफ खाई है
रब ने भी किस्मत क्या
खूब बनाई है
रोग खाट
पर भूख रसोई में सोती
हँसी खुशी से बरसों भेंट नहीं होती
पीड़ा ने आँगन में जड़ें ज
माई हैं
सपनों में
बच्चे जी भर रोटी खाते
जगते तो आश्सन उनको भरमाते
माँ के आँचल तक में पिसी
खटाई है
आसमान से
मौसम बरसाता कोड़े
धरती ने भी सभी नेह नाते तोड़े
हमको तो हर ऋतु ने आँख
दिखाई है
८ अप्रैल २०१३
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