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पितृपक्ष में
हाथ पकड़ अपने पापा का
हठ मुद्रा में बच्चा बोला
चलिए पापा,
पितृपक्ष में बाबाजी को
वृद्धाश्रम से घर ले आयें
देख रहा हूँ पितृपक्ष में पास-पड़ोसी
केश मुड़ा कर
जल देते अपने पुरखों को बड़े भोर से
नित्य नहाकर
जो उनको अच्छा लगता था करते दान
उन्हीं चीजों का
भोजन करवाते ब्राह्मण को बड़े प्रेम
से घर बैठाकर
पूरे साल नहीं तो छोड़ो
पितृपक्ष में ही कम से कम
बाबा जी को वापस लाकर
मन-माफिक भोजन करवाएँ
पता नहीं मृत पितृगणों को सुमिरन करके
तिल-मिश्रित जो जल गिराया जाता धरती पर
कैसे स्वर्गवासियों की वह प्यास बुझा पायेगा
वह भोजन जो ब्राह्मण ने उदरस्थ किया है
उसका पाचन-तंत्र कार्यरत है जिस पर, वह
कैसे स्वर्ग गये पुरखों की भूख मिटा पायेगा
जो भी हो
पर जो जीवित हैं
नहीं उपेक्षित रहें और वह
उनकी करें जरूरत पूरी
हम श्रद्धा से शीश नवाएँ
२५ फरवरी २०१३
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