कठिन समय है
बौने दिन हैं लंबी रातें
घर आँगन तक बिछी बिसातें
कठिन समय है
कुआँ खोदकर पानी पीते
रोज यहाँ मर-मर कर जीते
बनती नित्य नवीन योजना
कागज पर सैकड़ों सुभीते
सच्चाई को धता बताते
कोरे वादों से भरमाते
कठिन समय है
राजा जी हैं अंधे बहरे
अधरों पर बैठे हैं पहरे
मरुथल पर मृग छौने जैसी
देखो कहाँ जिंदगी ठहरे
अपनों से अपनों की घातें
मौसम तक दुश्मनी निभाते
कठिन समय है
८ अप्रैल २०१३
|