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भूल की
धौंस किसी की नहीं कुबूल की
कहते हैं लोग,
बड़ी भूल की
फूलों पर
प्राण वारते रहे
मधुवन को ही सँवारते रहे
गले पड़ी दुश्मनी
बबूल की
तने रहे
सदा स्वाभिमान से
दूर रहे दरबारी गान से
और हवा अपने
प्रतिकूल की
चुटकी भर
सच ललाट पर धरे
पता नहीं किसको-किसको अखरे
कीमत खुद भी नहीं
वसूल की
८ अप्रैल २०१३
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