बोल रहा घर
बोल रहा अब
घर दिन-भर चुपचाप रहा है!
हम लौटे हैं रात हुए
ऑफ़िस से थककर
पूरे दिन का भरा हुआ
बैठा है यह घर
बंद खिड़कियों
दरवाज़ों ने
जाने क्या कुछ हमें कहा है!
घर के बाहर
रहे खोजते हम सपनों को
पूछ रहा घर-
कहाँ छोड़ आए अपनों को
घर की
इन बेहूदा बातों को
हमने हर रोज़ सहा है!
कभी-कभी घर
मुँह-अंधियारे हमें जगाता
अम्मा की गाथा
मीरा का भजन सुनाता
बरस रहा है पानी
उसमें
घर भी खुश हो रहा नहा है!
२३ नवंबर २००९ |