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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएं

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए
इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा
ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

संकलन में-
बरगद- बरगद ठूँठ हुआ
खिलते हुए पलाश- टेसू के फूलों वाले दिन
नयनन में नंदलाल- टेर रही कनुप्रिया
नयनन में नंदलाल- वंशी की धुन
नया साल- वर्ष की पहली सुबह
नया साल- तरीका नव वर्ष मनाने का

होली है- दिन वसंत के

  बोल रहा घर

बोल रहा अब
घर दिन-भर चुपचाप रहा है!

हम लौटे हैं रात हुए
ऑफ़िस से थककर
पूरे दिन का भरा हुआ
बैठा है यह घर

बंद खिड़कियों
दरवाज़ों ने
जाने क्या कुछ हमें कहा है!

घर के बाहर
रहे खोजते हम सपनों को
पूछ रहा घर-
कहाँ छोड़ आए अपनों को

घर की
इन बेहूदा बातों को
हमने हर रोज़ सहा है!

कभी-कभी घर
मुँह-अंधियारे हमें जगाता
अम्मा की गाथा
मीरा का भजन सुनाता
बरस रहा है पानी
उसमें
घर भी खुश हो रहा नहा है!

२३ नवंबर २००९

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