मेघ सेज पर भी थे छाए
कल सपने में
नदी-पार के जंगल आए!
जंगल में थीं हँसती फिरतीं
वन कन्याएँ
साँस-साँस में उनके थीं
ऋतु की कविताएँ
वन के भीतर
खुली चाँदनी के थे साए
वहीं रात भर
इंद्रधनुष ने रंग बिखेरा
तुमने भी कनखी से हम पर
जादू फेरा
हाँ, सजनी
कल मेघ सेज पर भी थे छाए!
हम-तुम दोनों
नदी किनारे घूमे जी भर
बच्चे हमको दिखे बनाते
बालू के घर
हमने भी
आकाश-कुसुम थे वहीं खिलाए!
1 मई 2007
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