अपराधी देव हुए
अपराधी देव हुए
ऐसे में क्या करें मंदिर की घंटियाँ
उनको तो बजना है
बजती हैं
कई बार
आपा भी तजतीं हैं
धूप भरी भोर-हुए
कैसे फिर धीर धरें मंदिर की घंटियाँ
भक्तों की श्रद्धा वे
झेल रहीं
आँगन में अप्सराएँ
खेल रहीं
उनके सँग राजा भी
देख-देख उन्हें तरें मंदिर की घंटियाँ
एक नहीं
कई लोग भूखे हैं
आँखों के कोये तक
रुखे हैं
दर्द सभी के इतने
किस-किस की पीर हरें मंदिर की घंटियाँ।
१ जून २००९ |