पीपल का पात हिला
पीपल का पात हिला
उससे ही पता चला
अभी सृष्टि ज़िंदा है
शाहों ने मरण रचा
बस्तियाँ मसान हुईं
सुबह-शाम-दुपहर औ' रातें
बेजान हुईं
कहीं कोई फूल खिला
उससे ही पता चला
अभी सृष्टि ज़िंदा है
शहज़ादों का खेला
गाँव-गली राख हुए
सारे ही आसमान
अँधियारा पाख हुए
एक दीया जला मिला
उससे ही पता चला
अभी सृष्टि ज़िदा है
नाव नदी में डूबी
रेती पर नाग दिखे
संतों की बानी का
कौन भला हाल लिखे
रँभा रही है कपिला
उससे ही पता चला
अभी सृष्टि ज़िंदा है।
१ जून २००९ |