अनुभूति में
कुमार रवींद्र
की रचनाएँ
नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर
गीतों में
अपराधी देव हुए
इसी गली के आखिर में
और दिन भर...
खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा
ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ
तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं
हाँ सुकन्या
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धुर बचपन की याद
धुर बचपन की
किसी याद में
बसा हुआ भीमा कहार है!
बाबू जी कहते थे उसको
'भीम पलासी'
वह स्वारथ करता था
घर का खाना बासी
उसका बापू बाऊ जी का
था चपरासी
साथ खेलते थे
हम उसके
वही याद सिर पर सवार है!
उसकी एक बहन थी,
सब 'बड़की' कहते थे
वह जिज्जी थी,
धौंस सभी उसकी सहते थे
वहीं बैंक के 'कैंपस' पर
हम सब रहते थे
उसका एक अधन्ना
हम पर
सच मानो अब भी उधार है!
उनके घर ही खाई थी
हमने गुड़धानी
देस-गाँव से गुड़ लाई थी
उनकी नानी
गाते थे उनके बाबा
कबिरा की बानी
वह सारा सुख
सच में, साधो
अब यादों की नदी-पार है!
२३ नवंबर २००९ |