अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

  काश! पढ़ पाते

काश!
पढ़ पाते कहीं
इतिहास हम पगडंडियों का!

हाँ, उसी में ज़िक्र मिलता
भोर में उगती किरण का
बीच-जंगल में भटकते
किसी कस्तूरी हिरण का

जहाँ परियों की गुफ़ाएँ
नाम पढ़ते
हम उन्हीं वनखंडियों का!

जान पाते तभी
किसके पाँव कितनी बार गुज़रे
घुँघरुओं के छंद सुनते
जो इधर से चढ़े-उतरे

जहाँ जाकर वे बिलाए
भेद गुनते
देह की उन मंडियों का!

किसी वन में कभी सुनते
आहटें वामन-पगों की
कोई पगडंडी बताती
किस तरफ़ कब टोलियाँ गुज़री
ठगों की

क्या बताएँ
वक़्त है यह
राजपथ की ही सुनहरी झंडियों का!

२३ नवंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter